Ram Navami Katha In Hindi : History

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Ram Navami Katha In Hindi : History

दोस्तों , आज हम आपसे Ram Navami Katha In Hindi या राम नवमी क्यों और कब मनाते है आदि विषयों पर विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे , आशा है रामनवमी विशेष पर आपको हमारी यह पोस्ट काफी पसंद आएगी |

Ram Navmi Kab Manate Hai ?

हमारी गुणातीत श्रद्धा मेें प्रत्‍येक युग में देश काल के अनुरूप परमतत्‍व अवतार धारण करता है।इसी पावनी परंपरा में प्रत्‍येक कल्‍प में, त्रेतायुग में राम भगवान का अवतरण होता है, जो हम चैत्र शुक्‍ल नवमी को मनाते हैं, राम नवमी के रूप में। हमारे भारतीय संवत्‍सर के अनुसार, नया साल चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा से शुरू होता है। नवमी को पहली नवरात्रि होती है। दुर्गा पूजा के, शक्ति पूजा के ये दिन होते हैं। मतलब यह हुआ कि प्रतिपदा से नवमी तक शक्ति आराधना पूरी होती है और परम शक्ति का प्राकट्य होता है नवमी को। यह ऐसा परम पावन दिन है, राम नवमी, राम जन्‍म महोत्‍सव। लेकिन राम सर्वकालिक है, इसलिए उसको कोई एक देश, काल और केवल व्‍यक्ति की सीमा में बांधना संभव ही नहीं। राम को शायद हम पूरा नहीं समझ पाएं। राम तो परम तत्‍व हैं।

रामचरितमानस में कहा गया है कहा गया है कि ‘सबको विश्राम दे, वह राम।‘ तो गुरू कृपा से मेरी अपनी समझ यह बनी कि वह चाहे अयोध्‍या में प्रकट हुए हों, चाहे कोई भी प्रांत में, कोई भी देश में, पाताल में, आकाश में या कहीं भी प्रकट हुए हों, लेकिन वह आराम को प्रदान करें, विश्राम को प्रदान करें और साथ-साथ अभिराम को प्रकट करें। हमारे आंगन में आराम, विश्राम, विराम और अभिराम- ये चार खेलने लगें, तो समझना चाहिए कि तुलसी का राम चार पैरों से हमारे आंगन में घूम रहा है। आज के सन्‍दर्भ में राम जन्‍म महोत्‍सव का यही सात्विक- तात्विक अर्थ भी निकालना चाहिए। मानस में स्‍पष्‍ट लिखा है कि राम मानव के रूप में आए, ऐसी शर्त है- ‘लीन्‍ह मनुज अवतार’ । चतुर्भज रूप लेकर प्रकट हुए, तो कौसल्‍या ने मना कर दिया कि मुझे चार हाथ वाला ईश्‍वर नहीं चाहिए। आज के जगत को दो हाथ वाले ईश्‍वर की ज्‍यादा जरूरत है। इंसान के रूप में ईश्‍वर की ज्‍यादा जरूरत है, इसलिए तुलसी ने कहा, ‘लीन्‍ह मनुज अवतार’। हाथ भले दो हो, मनुष्‍य के रूप में हो, लेकिन चार हाथों का काम करे, ऐसा ईश्‍वर चाहिए। और ये चार हाथों का काम है- धर्म, काम और मोक्ष। विश्‍व के धर्म को संस्‍थापित करें।

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विश्‍व की अर्थ माने दुनिया में दीनता न रहे, हीनता न रहे, दुनिया संपन्‍न रहे। काम माने, दुनिया रसपूर्ण और पल-पल का आनंद उठाए। और मोक्ष माने, आखिर में सभी बंधनों से जो मुक्ति की ओर ले जाए, वही दो हाथ वाले राम के चार भुजधर्म हैं। राम दोपहर में जन्‍में, जिस समय व्‍यक्ति भोजन कर आराम करता है। तो आदमी को तृप्‍त कर विश्राम देने के काल में राम का आगमन होता है, “नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्‍छ अ‍भिजीत हरिप्रीता, मध्‍य दिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक विश्राम”। नवमी तिथि रिक्‍त है। किसी शास्‍त्र के कारणवश उसमें कर्मकांडी लोग कर्मकांड करने से मना करते हैं। नवमी तिथि का दूसरा पक्ष यह भी है कि यह पूर्ण है, दस में तो फिर एक के साथ जीरो जोड़ना पड़ता है। ग्‍यारह में दो एक करना पड़ता है। एक, दो, तीन, चार, पांच की गिनती में नौ आखिरी तिथि है, इसलिए उसको पूर्ण भी कहा गया है। मंगलवार मंगल का सूचक है और राम स्‍वयं मंगल भवन हैं। मंगल, पृथ्‍वी का ही एक अंग है, तो मुझे लगता है कि चूंकि मंगल, पृथ्‍वी का ही एक अंश है, इसलिए भगवान पृथ्‍वी पर सबका मंगल करने के लिए आए हैं। ‘मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की’ इसलिए मंगलवार बहुत अर्थों में सफल है।

मानस में वसिष्‍ठ जी कहते हैं, ‘जो आनंद का सागर है, सुख की खान है और जिसका नाम लेने से आदमी को विश्राम मिलेगा और मन शांत होगा, उस बालक का नाम राम रखता हूं।‘ तो राम महामंत्र है। इस महामंत्र का जप करने वाले को तीन नियम मानने चाहिए। पहला सूत्र-राम नाम भजने वाला किसी का शोषण न करे, बल्कि सबका पोषण करे। दूसरा सूत्र- किसी के साथ दुश्‍मनी न रखे और दूसरों की मदद भी करे। ऐसा करेंगे, तो राम नाम ज्‍यादा सार्थक होगा। सुंदरकांड में हनुमान को लंका में जलाने का प्रयास किया गया। जहां भक्ति का दर्शन होता है , उसे समाज रूपी लंका जलाने का प्रयास करती ही है, लेकिन सच्‍चे संत को लंका जला नहीं सकती। तीसरा सूत्र है- सबका कल्‍याण और समाज को जोड़ना। लंका कांड के आरंभ में सेतु बांध तैयार हुआ। दिव्‍य सेतु बांध के दर्शन कर प्रभु ने धरती पर भगवान रामेश्‍वर की स्‍थापना की। यह शिव स्‍थान हुआ। यह राम नीति है। कल्‍याणकारी राज्‍य की स्‍थापना करना। शिव यानी कल्‍याण। सेतु निर्माण करना यानी समाज की जोड़ना। राजा दशरथ और कौसल्‍या का दांपत्‍य पावन था, तो उनके घर राम का जन्‍म हुआ। आज भी राम प्रतीक्षा में हैं, मगर दशरथ और कौसल्‍या नहीं मिलते। पत्‍नी, पति को आदर दे, पति प्रेम बरसाए और दोनों मिलकर श्रद्धा-भक्ति करें, यह तीन सूत्रीय फॉर्मूला जहां साकार हो गया, वहां रामनवमी हो जाएगी। पुरूषार्थ करो, प्रार्थना करो, प्रतीक्षा करो, तो प्रभु आएंगे। अहिल्‍या, शबरी, जानकी, जटायु और सुग्रीव प्रमाण हैं, जिन्‍होंने प्रतीक्षा की, तो प्रभु स्‍वयं आए। ‘एहि महं रघुपति नाम उदारा, अति पावन पुरान श्रुति सारा।‘ ऐसे रामचरितमानस का प्राकट्य भी संवत 1631 में अयोध्‍या में रामनवमी के दिन ही हुआ। उस दिन भी वही लगन था, जो त्रेता युग में राम के जन्‍म के दिन चैत्र नवरात्र शुक्‍ल पक्ष की नवमी को था, तो ऐसी महिमामयी राम नवमी का हमें स्‍वागत करना ही चाहिए।

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