Pyaar Sab Badal Deta Hai Lyrics Navaldeep Singh
मै जब छोटा था तो,
माँ अक्सर कहा करती थी|
कि बेटा कभी तो हरी,
सब्जियां खा लिया करो|
भिन्डी, लौकी, टिंडा, करेला,
न जाने कहाँ – कहाँ से,
इतने खौफनाक नाम
ढूढ कर लाती और
मुझे खिलाने की कोशिश करती|
पर मै इन सब्जियों के नाम से ही,
इतना खोफज़दा हो रखा था
कि इन्हे खाना तो दूर की बात
इनकी शक्ल तक
से मुझे नफ़रत थी
एक मुददत बाद माँ ने भी
बोलना छोड़ दिया और
हरी सब्जियों से मेरी
दूरी बढ़ती चली गयी
पिता जी डॉक्टर है
और सब्जियां खरीदने बहुत शौकीन है
इतने कि बहन की शादी मै हलवाई से
आर्डर पर सब्जी मंगवाने के बजाय
सुबह चार बजे उठकर
मंडी सब्जी लेने गए
और मुझे भी साथ ले गए
उस दिन मुझे पता चला कि
veg jalfrezi जैसी खुबसूरत
नाम वाली सब्जी में भी
भिन्डी जैसी खौफजदा करने
वाले सब्जी मिलाई जाती है
फिर क्या था मेरा veg jaifrezi से रिश्ता टूट गया
कुछ सालो बाद जब मै
मुबई में अकेला रहने लगा
तो कैंटीन में अगर कभी
भिन्डी का जिक्र हो जाता
तो मै भूख से दोस्ती करना आसान समझता
पर जनाब मेरी किस्मत में
तो कुछ और ही लिखा था
इश्क जब सुनामी बनकर जिन्दगी में आता है
तो सारे पुराने दरक साथ बह जाते है
कुछ दिनों बाद एक मोहतरमा के
लिए दिल में सिर्फ गिटार नहीं
पूरा ऑर्केस्ट्रा बजने लगा
बहरहाल बचपन में म्यूजिक
टीचर की बात मान ली होती
तो शायद सुर सही लग जाते
और जिन्दगी की उबली दाल में
प्यार का तड़का भी लग जाता
मेरी हालत उस इंसान की तरह हो गयी थी
जिसे किसी ने स्टेचू तो किया पर
पर ओवर बोलना भूल गया हो
अब मै उससे बात बात पर
मिलने के बहाने ढूढने लगा
एक रोज उसी ने कहा कि एग्जाम ख़त्म
होने के बाद हम कही डिनर पर चलेगे
ज्यादा खुश होने वाली बात नहीं है
इस हम में दो नहीं बल्कि तीन लोग थे
मै वो और हमारी एक कॉमन फ्रेंड
कोई बात नहीं मैंने कहा ऐसा भी ठीक है
पर न मिलने कभी प्लान बना और
न कभी वो डिनर हो पाया
एक रोज मै किसी शूट पर था
शूट से जस्ट निकला ही था
सुबह से कुछ खाया नहीं था
बेहद भूखा था कि मेरी उस कॉमन
फ्रेंड का मुझे फ़ोन आया और उसने बोला
कि वह उस लड़की के घर पर है
और मै वहां आकर थोडा
टाइम स्पेंड कर सकता हूँ
मौका अच्छा था चला गया
वहा जाने के बाद आज
मेरी कॉमन फ्रेंड ने पूछा
कि तुमने सुबह से कुछ खाया है क्या
जिसका मैंने जवाब दिया
मुझे टाइम नहीं मिला
और इस पर मोहतरमा भड़क गयी
उन्होंने बोला कैसे टाइम नहीं मिला
बहुत बड़े आदमी हो
गए हो अब तो तुम
सुनो चुप चाप बैठो तुम्हारे लिए
कुछ बना कर लाती हूँ
भिन्डी खा लेते हो ना
भिन्डी
ये समझ लो उस समय
स्टेचू ने बस सर हिला दिया
क्योंकि आँखों का गुस्सा देख कर
ना बोलने की हिम्मत नहीं हुई
जिस इन्सान ने बचपन में
भिन्डी से सिद्दत से
दुश्मनी निभायी थी
वो उस रोज भिन्डी के साथ
चार पराठे कैसे खा गया
किसी को नहीं पता
खैर अगर आज की भाषा में कहू
तो भले ही आज उसने
मुझे लेफ्ट स्वाइप क्यों न किया हो
भले ही उसका मेरा
सुपर मैच न हो पाया हो
पर मुझे मेरी जिन्दगी का
परफेक्ट मैच ज़रूर मिल गया भिन्डी
उसका न हो पाने का गम
मै लफ्जो के मसालों से छुपा लिया करता हूँ
जब भी उसकी याद आती है
चार पराठे और भिन्डी खा लिया करता हूँ
इस पूरे किस्से से मै
और कुछ सीखा या नहीं
ये तो नहीं पता
पर इतना ज़रूर सीख गया कि
जब आप किसी से प्यार करते है
तो आप को खुद को बदलने की ज़रूरत नहीं पड़ती
प्यार खुद ब खुद बदल देता है