Mushkurate Raho By Amandeep Singh Lyrics In Hindi

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Mushkurate Raho By Amandeep Singh Lyrics In Hindi : दोस्तों , आज हम आपसे Amandeep Singh की Mushkurate Raho Love Story Share कर रहा हूँ , Amandeep Singh की Stories को इतना अच्छा Cover करते हैं, कि ऐसा लगता है मानो वो Story सामने चल रही हो !

Mushkurate Raho By Amandeep Singh Lyrics In Hindi 

हर शाम की तरह उस शाम भी मन मचल रहा था

और मै बिस्तर पर करवटे बदल रहा था आँख लगी ही थी

कि मुझे लगा जैसे दरवाजे पर दस्तक हुई मैंने दरवाजा खोला

दुपट्टा गुलाबी,आँखे शराबी,बाल रेशमी,मिजाज नवाबी,क्या हुस्न था

उसने बताया कि मेरे एक कमरे के इस तरफ वाले खाली कमरे में वो रहने आयी थी

कत्लेआम हुआ उसकी नजरो से मेरा कोई छुरी या चाकू नहीं

दोस्तों लगा इस कमरे की किस्मत की तरह मेरी जिन्दगी अधूरी नहीं फिर क्या था

बाते हुई, मुलाकाते हुई जिनका ज़िक्र नहीं होता वो ऐसी भी राते हुई

साथ सड़क पर गाड़िया वाले तरफ मै चलता था

उसकी हर मुस्कराहट पर दिल मचलता था

एक दिन न जाने क्यू उसने मुझसे कहा कि हमारे बीच अब वो बात  नहीं

मुझे यही समझ में नहीं आया कि हमारे बीच जगह कहाँ थी

मैंने लाख समझाया पर वो मानी नहीं मेरे लिए उसके बिना कोई कहानी नहीं

एक  पल मे चली गई वो मुझे छोड़ कर वो राते, वो बिस्तर, वो करवटे वापिस मुझ तक मोड़ कर

हर शाम की तरह उस शाम मन मचल रहा था मै बिस्तर पर करवटे बदल रहा था

आँख लगी ही थी कि मुझे लगा जैसे दरवाजे पर दस्तक हुई

क्या मैंने आप लोगों को  बताया था कि मै भूल गया था कि मेरे इस तरफ वाला कमरा भी खाली था

मैंने दरवाज़ा खोला इस बार, इस बार दुपट्टा नीला, मिजाज शर्मीला, जैसे कोई कमाल क्या हुस्न, क्या हाल

फिर कत्लेआम हुआ उसकी नजरो से मेरा कोई चाकू या छुरी नहीं

दोस्तों मुस्कुराते रहो ज़िंदगी इतनी भी बुरी नहीं

तो बात ऐसी है घर जैसी है कभी- कभी थोड़ी ज्यादा पी लेता हू

ज़िंदगी हद से ज्यादा जी लेता हू

उस रोज माँ ने कहा था बाबा घर देर से आयेगे तो हमने भी सोचा जाम पर जाम लगायेगे

तो स्माल मिलाता गया लार्ज बनाता गया

आठ पैक पेट के अन्दर गए दो मेज पर तैयार किये गिन कर पूरे 10 तक हुये

इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई मैंने दरवाज़ा खोला सामने बाबा खड़े थे

और मै उनकी नजरो में खड़ा न हो सका उनका बताना डाटना ,समझाना ,चताना

हर एक चेहरा मेरी आँखों से होकर गुज़रा

और वो बिना  कुछ बोले मेरे यहाँ से होकर गुज़रे दिन, सप्ताह, महीने हमारी बाते बंद थी

न वो कुछ कहते और न मेरी हिम्मत थी अपने ही घर में कभी इतना न अकेला लगा था

बाबा की पुरानी कमीज पहनकर कभी इतना पराया न दिखा था

घड़ी की टिक टिक ने हर सेकंड मर डाला रोज बजते रहे नौ दस  ग्यारह बारह बारह बारह बारह

जैसे लगा दरवाजे पर दस्तक हुई मैंने दरवाजा खोला सामने बाबा खड़े हुए थे

क्या मैंने आपको लोगों को बताया कि मै भूल गया था कि उस मेरा जन्मदिन था

बाबा मुस्कुराकर बोले कि लो बेटा तुम हो गए 21

पीछे से एक बोतल निकालकर वो थी ग्लैंफिन्तेज़ कहा साथ सुबह तक बैठ कर जाम लगायेगे

एक दूसरे को किसी तीसरे की कहानिया सुनायेगे उस रात लगा जैसे रात पूरी रही

दोस्तों मुस्कुराते रहो ज़िंदगी इतनी भी बुरी नहीं

कुछ गिने चुने से साल है जो है यही हाल है

थोड़े रिश्ते है ज्यादा वादे है कुछ पुरे है कुछ आधे है चार दोस्त है अनेक इरादे है

ज़िंदगी हार जीत से आगे है जो बाते अधूरी है अधूरी सही

दोस्तों मुस्कुराते है ज़िंदगी इतनी भी बुरी नहीं !!

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