Essay On Beggary Problem : भिक्षावृत्ति की समस्या –प्राचीन समय की बात है भारत मे ऋषियों के आश्रमो मे युवक ब्रहमचर्य व्रत धारण धारण कर गुरु से शिक्षा प्राप्त करते थे |और ऋषि -मुनि सन्यासी का जीवन बिताते थे |वे स्वयं कोई काम -धंधा नही करते थे उनके जीवन की आवश्यकताए भिक्षाव्रत्ति से ही पूरी की जाती थी |ग्रहस्थ जन प्रसन्न होकर वटुकों को भिक्षा देते थे |वे अध्ययनशील विधार्थियों तथा चिंतन -मनन तपस्या मे लीन मुनियो का पालन करना अपना कर्तव्य समझते थे |
शंकराचार्य जी ने कहा है- ” सन्यासी को चाहिए की भूख रुपी रोग के निवारण के लिए भिक्षा रुपी औषधि का सेवन करे”|बौद्ध धर्म में भिक्षुक होते है थे और जैन धर्म में साध्वी कही जाने वाली ये संन्यासी का वेश धारण कर परोपकार के कार्य में घूमते रहते थे |और इनके इस सेवा कार्य के लिए समाज उनके भरण -पोषण की समुचित व्यवस्था करता था |इस प्रकार बहुत समय तक भिक्षा देना और भिक्षा लेना दोनों पुण्य के काम होते है |परन्तु दाता तथा भिक्षुक दोनों के लिए कुछ नियम थे |दाता को दान देने या भिक्षा देने से पूर्व सुपात्र तथा कुपात्र की परीक्षा करके सुपात्र को ही भिक्षा देनी चाहिए |भिक्षा के नियम बताते हुए समर्थ गुरु रामदास ने दास बोध में लिखा है यजमान के द्वार पर जाकर पूछना चाहिए की कुछ भिक्षा मिलेगी ?और यदि भिक्षा मिले तो उतनी ही ले जितनी आवश्यक है |
समय बदलने के साथ -साथ परिस्थितिया बदली|आजीविका न कमा सकने वालो को अपनी इच्छा के विरूद्ध आत्म -सम्मान बेचकर भीख मगनी पड़ी |यह जानते हुए भी की भीख मांगने से आत्म सम्मान नष्ट होता है |दीं बनकर गिडगिडाना पड़ता है |रहीम ने भिक्षावृत्ति की निंदा की है” रहीम वे नर मर चुके जे कही मांगन जायं “पर साथ ही उन्होंने सूम ,कंजूस ,अनुदार व्यक्तियों की निंदा की है -उनते पहले वे मुए जिन मुहँ निकसत नाही |”हाथ फैलाकर पेट की भूख शांत करने के लिए दीनता दिखाकर मांगना भीख है |यह जीते रहने का निकृष्टतम तरीका है |इसकी ज्वाला में मान सम्मान ,पुरुषार्थ सब स्वाहा हो जाते है ,मनुष्य हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है तथा दूसरे के आगे गिड़गिड़ाता है |
आज की स्थिति यह है कि हमारे देश और समाज में कई तरह के भिखारी दिखाई देते है |
(1) जन्मजात भिखारी अर्थात वे जो भिखारी के घर में पैदा होते है |ये भिक्षा मागने को अपना अधिकार समझते है ,ठीक उसी प्रकार जैसे अध्यापक का बेटा अध्यापन -कार्य को अपना पेशा बनाते है
(2) शारीरिक रूप से अपंग लोग -अंधे ,लूले -लगड़े ,कोढ़ी |
(3) शरीर से स्वस्थ होते हुए कामचोर ,आलसी होने के कारण विकलांग होने का स्वांग भरने वाले |
(4) पेशेवर गुंडों या माफिया गिरोहों के जाल में फँसने वाले अनाथ बच्चे जिनका अंग -भंग कर उनसे भिक्षाव्रत्ति कराई जाती है |कोमल ह्रदय ,भावुक ,दयालु नागरिको से प्राप्त धन का केवल दस प्रतिशत ये भिखारी बालक पाते है ,शेष गुंडों की जेब में जाता है |
(5) धर्म की आढ़ लेकर साधु का वेश पहन कर स्वयं को संन्यासी कहने वाले कामचोर ,आलसी लोग इन्ही के बारे में कहा गया है |
” नारी मुई घर संपत्ति नासी
मूड़ मुड़ाय भये संन्यासी “
सब जानते है कि भिक्षाव्रत्ति हेय ,तुच्छ और अपमानजनक कार्य है |बहुत पहले संत कबीर ने कहा है –
“मांगन मारन सामान है मति कोई मांगो भीख,
मांगन से मरना भला ,यह सतगुरु की सीख |”
परन्तु भिक्षाव्रत्ति पहले भी थी और आज भी है |कुछ लोगों का भिक्षाव्रत्ति द्वारा आजीविका कमाना ,पेट भरना तो न्यायसंगत लगता है ,जैसे विकलांगो का माफिया गिरोहों के चंगुल में फंसे बच्चो का भीखं मांगना उनकी लाचारी है व्फे चाहते हुए भी उस जाल से मुक्त नही हो सकते |परन्तु कामचोर ,निठल्लो का साधु वेश धारण कर भीख मांगना और भीख से प्राप्त धन से मालपुए उड़ाना और रात के अँधेरे में अनेक अनैतिक कार्य करना अनुचित ही नही दंडनीय अपराध है |इसी प्रकार विकलांगो का ,अंधे ,कोढ़ी ,लूले -लंगड़ो का स्वाग भर कर भीख मांगना घोर अपराध है |
भिक्षाव्रत्ति व्यक्ति के लिए अपमानजनक है और देश के लिए लज्जा की बात है |भारत इन्ही भिक्षुको के कारण ही विदेशो में बदनाम है औरे ठीक भी है पर्यटक आते है मनोरंजन के लिए ,सैर करने के लिए यहाँ की वस्तुकला और प्राक्रतिक शोभा देखने के लिए और जब भिखारियों की भीड़ उन्हें घेर कर उनका चलना ,भोजन करना तक कठिन कर देती है |तो उनका चिढ़ना ,झुझलना ,क्रोध करना न्याय संगत ही है |देश के लिए अपमानजनक इस भिक्षाव्रत्ति को जो हमारे माथे पर कलंक है उसे कैसे रोका जाय |हमारी समझ में इसके निम्न उपाय है |
(1) भिक्षा को दंडनीय अपराध घोषित किया जाय |
(2) भिक्षुओ को पकड़कर पहले उनकी जाँच की जाय |जो स्वस्थ हो उन्हे पकड़कर श्रम -कार्यो मे लगाया जाय जैसे 1976 मे महाराष्ट्र मे तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकर च्वहाण ने किया था| मुंबई मे पकड़े गए 600 भिखारियो को मराठावाड़ा मे नहर की खुदाई के काम मे लगाया गया था |ज़ो वस्तुतः विकलांग है कुछ भी नही कर सकते उन्हे -बैगर होम या सेवा कुटीर संस्थानो मे रखा जाय उनके लिए भोजन कपड़ा ,आवास की समुचित व्यवस्था की जाय |जो विकलांग होने का स्वांग कर रहे हो उनको कठोर दंड दिया जा सकता है |
(3) जो पूरी तरह काम करने मे असमर्थ है ,उन्हे प्रशिक्षण देकर कुटीर -उद्योगो मे लगाया जाए और उनसे उतना ही काम लिया जाय जितना वो काम कर सकते है
(4) जन साधारण मे यह चेतना जगाई जाय कि सुपात्र को दान देना ही पुण्य है ,कुपात्र को भिक्षा देना पाप है आसमाजिक कार्य है |विनोबा भावे ने ठीक ही लिखा था तगड़े और तंदरुस्त आदमी को भीख देना ,दान देना अन्याय है |कर्महीन मनुष्य भिक्षा दान का अधिकारी नही हो सकता |
सारांश यह है कि नकली भिखारियो को चाहे वे साधु वेशधारी हो या फिर विकलांग होने का नाटक करने वाले उन्हे दण्ड देकर काम मे लगाकर तथा सुपात्रों की सहायता कर इस दूषित ,घ्राणित प्रथा को रोका जा सकता है |साथ ही जनता मे यह चेतना जगानी होगी की सुपात्र को ही दान दिया जाय कुपात्र को दान देना पाप है ,देश और समाज सभी के लिए अहितकर है |