“Cycle” Story Lyrics In Hindi – Yahya Bootwala
Hi friends, “Bharat ki Shan” पर आपका स्वागत है। आज मैं आपको Yahya Bootwala की “Cycle” Story In Hindi को आपसे शेयर कर रहा हूं। इसे 2 मिलियन से ज्यादा लोग देख चुके है। जिसमे Yahya ने बहुत ही सुंदर ढ़ंग से बताया है कि कैसे बचपन में जब हम साइकिल सीखते है तो कितनी बार गिरते और संभलते है और उसी प्रकार इस Cycle को जीवन से जोड़ा है कि कैसे जिन्दगी को जीना चाहिए।
एक सुबह बाबा आए मुझे उठाकर बोले Yahya चलों आज मैं तुम्हें साइकिल चलाना सिखाता हूं। यार अब तक आफताब ने भी अपनी आंखे खोली नहीं थी। और मैं खुद रात को Cartoon देखकर देरी से सोया था। तो मैंने वही कहा जो हर बच्चा बोलता हो। ठीक है बाबा। मैं जैसे ही बाहर गया वहां पर एक नई चमचमाती हुई साइकिल मेरा इन्तजार कर रही थी। उसको देखकर मेरा नादान सा मन उछल-कूद करने लगा। पर जैसे ही मेरी नजर पिछले वाले पहिये के Trainning Wheels के गैरमौजूदगी पर गई मेरा मन फिर बैठ गया।
ज़हन में एक डर सा उठ गया था पर जिसे बाबा ने भांप लिया था इसलिये उन्होंने कहा- बेटा, मैं हूं ना। तो उस छोटी सी साइकिल की छोटी सी सीट पर मैंने अपनी छोटी सी तशरीफ जमाई। Peddle पर जोर डाला पहिये थोड़ा घूमें और साइकिल डगमगाते हुए आगे बढ़ी। जिससे मैं खुश था, पर न जाने क्यों बाबा पीछे से कहे जा रहे थे कि handle सीधा रखो। अरे, ये साइकिल दायें जा रही है Peddle करना मत छोड़ो। अरे, गिर जाओगे। पहले दिन इतनी, इतनी कसरत कौन कराता है। पर बाबा ये कसरत मुझे रोज करा रहे थे फिर एक दिन अचानक मेरी साइकिल ने डगमगाना छोड़ दिया। खुशी के मारे मैं बाबा को पीछे मुड़ के यह कहना चाहता था देखो बाबा मैं साइकिल करना सीख गया पर बाबा बहुत दूर खड़े हुए थे मैं इतना दूर खड़ा था कि मैं डरा और मेरी डर की वजह से साइकिल फिर डगमगायी। और पहली बार गिरी।
मेरी तशरीफ जो सीट पर जमी हुई थी वो ज़मी पर आ गिरी थी। बाबा दौड़े-दौड़े पीछे से आए थोड़ा मुस्कुराये मुझे उठा कर घर ले गये। पर न जाने क्यों उस दिन से गिरने का एक अजीब सिलसिला शुरू हो गया था क्योंकि जहां मेरी साइकिल ने डगमगाना छोड़ा मैं, और जब तक मेरी नजर मेरी फिर रस्ते पर पड़ती मैं खुद रस्ते पर पड़ा होता। तो एक दिन मैंने सोचा आज तो मैं इस डर की ऐसी की तैसी करूंगा।
तो मैंने अपनी साइकिल को भगाना शुरू किया इतना तेज बाबा पीछे से चिल्ला रहे थे बेटा तुम बहुत तेज जा रहे हो थोड़ा धीमे चलाओ थोड़ा धीमे चलाओ अरे वो आगे देखो खड्ढ़ा है। अरे तुम किसी से टकरा जाओगे। उनकी सारी नसीहत मानो मेरी रफ्तार में कहीं गुम सी हो गई थी। ये जो हवा चल भी नहीं रही थी वो अचानक मुझे चूमना शुरू कर चुकी थी और इस रफ्तार से मुझे बस मोहब्बत हो ही रही थी कि अचानक मेरा पैर फिसला peddle से साइकिल फिसली मैं घसीटते हुए जमीन पर गिरा। और पहली बार आंखो से आंसू और घुटने से लहू बहा। पर असली जख्म मेरे अहम् को लगा था।
बाबा दौड़-दौड़े आये आज बिना मुस्कुराये मुझे उठा कर घर ले गये बस इतना कहा कि कल साइकिल मत चलाना पर साइकिल अब मुझे चलानी थी क्योंकि कल तक मैं गिर रहा था अपने डर की वजह से आज जो मैं गिरा था वो अपनी बेवकूफी की वजह से। एक चीज जो मैं जानता था कि डर से तो तो भी लड़ा जा सकता पर बेवकूफी, बेवकूफी को न सुधारो तो उसको दोहराने की आदत पड़ जाती है।
तो अगली सुबह, मैं उठा सूरज से पहले साइकिल को Stand से हटाया और मीलो मील तक चला ले गया एक मोड़ से घुमाकर फिर घर तक लाया बिना गिरे। इस सुबह बाबा को मैंने उठाया हंसते-हंसते पूरा किस्सा सुनाया और बस इतना कहा किे बाबा देखो मैं साइकिल चलाना आखिर मैं सीख गया। बाबा मुस्कुराये और जवाब में कहा कि बेटा तू सिर्फ साइकिल चलाना नहीं आज तू जिन्दगी में चलना भी सीख गया। उन्होंने मुझे बताया कि कैसे handle हमारा ध्यान है paddle हमारी मेहनत ये चलती हुई साइकिल हमारे कामयाबी जो चल रही है जिस रास्ते पर चल रही है जिसे कहते है जि़न्दगी। उन्होंने मुझे समझाया कि घमण्ड की रफ्तार में और इन्सानी रिश्तों के खड्ढ़ों में मैं बार-बार गिरूंगा पर मुझे उठना है साइकिल को फिर से खड़ा करना है और चलाते जाना है तब तक जब तक मौत की खाई न आ जाए।